कछुए (Turtles) या कूर्म टेस्टूडनीज़ नामक सरीसृपों के जीववैज्ञानिक गण के सदस्य होते हैं जो उनके शरीरों के मुख्य भाग को उनकी पसलियों से विकसित हुए ढाल-जैसे कवच से पहचाने जाते हैं।[2] विश्व में स्थलीय कछुओं और जलीय कछुओं दोनों की कई जातियाँ हैं। कछुओं की सबसे पहली जातियाँ आज से १५.७ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थीं, जो की सर्वप्रथम सर्पों व मगरमच्छों से भी पहले था। इसलिये वैज्ञानिक उन्हें प्राचीनतम सरीसृपों में से एक मानते हैं। कछुओं की कई जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं लेकिन ३२७ आज भी अस्तित्व में हैं। इनमें से कई जातियाँ ख़तरे में हैं और उनका संरक्षण करना एक चिंता का विषय है। इसकी उम्र 300 साल से अधिक होती है [3] (नोट: भारत की एकमात्र कछुआ संरक्षण परियोजना भीतरकनिका,ओडिशा में 1989 को प्रारंभ हुई थी।)
कछुओं के रेटिना में असामान्य रूप से बड़ी संख्या में कोशिकाओं के होने से ये आसानी से रात के अंधेरे में देख लेते हैं। यह रंगों को देख सकते हैं और पराबैंगनी किरणों से लेकर लाल रंग तक को देख सकते हैं। कुछ भूमि में पाये जाने वाले कछुओं में तेजी की बहुत कमी देखने को मिलती है, इस तरह की कमी ज्यादातर शिकारियों में होती है, जो अचानक तेजी से शिकार को शिकार बना लेते हैं। हालांकि कुछ मांसाहारी कछुए अपने सिर को तेजी से स्थानांतरित करने में सक्षम हैं।
कछुए (Turtles) या कूर्म टेस्टूडनीज़ नामक सरीसृपों के जीववैज्ञानिक गण के सदस्य होते हैं जो उनके शरीरों के मुख्य भाग को उनकी पसलियों से विकसित हुए ढाल-जैसे कवच से पहचाने जाते हैं। विश्व में स्थलीय कछुओं और जलीय कछुओं दोनों की कई जातियाँ हैं। कछुओं की सबसे पहली जातियाँ आज से १५.७ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थीं, जो की सर्वप्रथम सर्पों व मगरमच्छों से भी पहले था। इसलिये वैज्ञानिक उन्हें प्राचीनतम सरीसृपों में से एक मानते हैं। कछुओं की कई जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं लेकिन ३२७ आज भी अस्तित्व में हैं। इनमें से कई जातियाँ ख़तरे में हैं और उनका संरक्षण करना एक चिंता का विषय है। इसकी उम्र 300 साल से अधिक होती है (नोट: भारत की एकमात्र कछुआ संरक्षण परियोजना भीतरकनिका,ओडिशा में 1989 को प्रारंभ हुई थी।)