क्रिल (Krill) छोटे आकार के क्रस्टेशिया प्राणी हैं जो विश्व-भर के सागरों-महासागरों में पाये जाते हैं। समुद्रों में क्रिल खाद्य शृंखला की सबसे निचली श्रेणियों में होते हैं - क्रिल सूक्ष्मजीवी प्लवक (प्लैन्कटन) खाते हैं और फिर कई बड़े आकार के प्राणी क्रिलों को खाते हैं।
दक्षिणी महासागर में अंटार्कटिक क्रिल (वैज्ञानिक नाम: Euphausia superba, यूफ़ौज़िया सुपर्बा) बहुत ही बड़ी तादाद में पाये जाते हैं। इनका कुल जैवभार ३८ करोड़ टन अनुमानित किया गया है, यानि कुल जैवभार के आधार पर (किसी भी जाति के सभी सदस्यों का कुल कार्बन भार मिला कर) अंटार्कटिक क्रिल हमारे ग्रह की सबसे विस्तृत जातियों में से एक है।[1] क्रिलों के इस महान जैवभार का लगभग आधा हर वर्ष व्हेलों, पेंगविनों, सीलों, मछलियों और अन्य समुद्री प्राणियों द्वारा खाया जाता है और क्रिल तेज़ी से प्रजनन द्वारा फिर से अपनी संख्या की पूर्ती करते रहते हैं। क्रिलों का स्वभाव है कि वे दिन के समय समुद्र में अधिक गहराई पर चले जाते हैं और रात्रि में सतह के पास आ जाते हैं। इस कारण से सतह और गहराई दोनों पर रहने वाली जातियाँ इन्हें खाकर पोषित होती हैं।
मत्स्योद्योग में क्रिल बड़ी संख्या में दक्षिणी महासागर और जापान के आसपास के सागरों में पकड़े जाते है। हर वर्ष की कुल पकड़ १.५ से २ लाख टन है, जिसका बड़ा भाग स्कोशिया सागर में पकड़ा जाता है। पकड़ा गये क्रिल का अधिकांश हिस्सा मछली पालन में मछलियों को खिलाने के लिये किया जाता है। इसका कुछ अंश औषध उद्योग में भी इस्तेमाल होता है। जापान, रूस और फ़िलिपीन्स में इसे खाया भी जाता है। जापान के खाने में इसे "ओकिआमी" (オキアミ, okiami) कहते हैं जबकि फ़िलिपीन्स में इसे "अलामांग" (alamang) कहते हैं और इसका प्रयोग "बागूंग" (bagoong) नामक एक नमकीन तरी के लिये होता है। क्रिल को खाने या खाद्य-सामग्रियों में प्रयोग करने से पहले इनका बाहरी खोल उतारना ज़रूरी है क्योंकि उसमें फ़्लोराइड होता है, जो बड़ी मात्रा में विषैला है।[2]
क्रिल (Krill) छोटे आकार के क्रस्टेशिया प्राणी हैं जो विश्व-भर के सागरों-महासागरों में पाये जाते हैं। समुद्रों में क्रिल खाद्य शृंखला की सबसे निचली श्रेणियों में होते हैं - क्रिल सूक्ष्मजीवी प्लवक (प्लैन्कटन) खाते हैं और फिर कई बड़े आकार के प्राणी क्रिलों को खाते हैं।